पिकासो एक अदभुत चित्रकार था .एक अमेरिकी करोडपति ने पिकासो को अपनी तस्वीर बनाने को दी .दाम पहले तय नहीं हुआ था उसकी तस्वीर दो साल में बनी .वह करोडपति इस बीच बार-बार पुछवाता रहा कि तस्वीर बनी की नहीं.पिकासो खबर भिजवाता कि थोडा धैर्य रखिये,भगवान भी आपको बनाते है तो नौ महीने लग जाते है फिर मैं तो साधारण मनुष्य हूँ दुबारा आपको बना रहा हूँ दो-तीन साल लग सकते है.
दो वर्ष के बाद पिकासो ने खबर भिजवाया कि आये और अपना चित्र ले जाए .करोडपति लेने आया तस्वीर तो काफी सुन्दर बनी थी ,उसे बहुत पसंद आया . उसने पूछा -इसका दाम?
पिकासो ने कहा ,पांच हज़ार डॉलर ! करोडपति चौक उठा बोला, क्या? पांच हज़ार!थोडा सा कैनवास और थोड़े से रंग और इसके दाम पांच हज़ार डॉलर? क्या मजाक करते हो इस कैनवास के टुकडो और इन रंगों की इतनी कीमत? पांच- दस डॉलर में ये सारे समान बाजार में मिल जायेगे और इसका दाम पांच हज़ार डॉलर!
पिकासो ने अपने सहयोगी को कहा कि जा भीतर ,इससे बड़ा कैनवास और रंगों कि ट्यूब लेकर आ और इन्हें दे दे और जितना भी ये देते हो ले ले.उसने ऐसा ही किया सारा समान उस करोडपति के सामने रख दी और कहा ये रहा आपका पोट्रेट अब आपकी जो मर्जी दस-पांच डॉलर दे जाए और यह सब लेते जाए .
करोडपति घबडा कर बोला -ये सब ले जाकर मैं क्या करूगा? तब पिकासो ने कहा फिर याद रखो, तस्वीर रंगों और कैनवास का जोड़ नहीं है उससे कही ज्यादा है,इनके द्वारा तो हम उसे उतारते है जो कैनवास और रंग नहीं है . और हम दाम उसके मांगते है जिसका रंग और कैनवास से सम्बन्ध नहीं है और अब पांच हज़ार में निपटारा नहीं होगा पचास हज़ार देते हो तो ठीक वरना यह तस्वीर अब नहीं बिकेगी .वह तस्वीर आखिर पचास हज़ार डॉलर में बिकी.
गौरतलब: अगर चीजों को हम तोड़कर देखे तो वो दो कौड़ी की हो जाती है और अगर जोड़ कर देखो तो सार्थक हो जाती है .जीवन में जो भी श्रेष्ठ है वह अखंड में है और जो भी व्यर्थ है वह खंडो में है.
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